Madhu varma

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लेखनी कविता - हरिनाम बिना नर ऐसा है -मीरां

हरिनाम बिना नर ऐसा है -मीरां 


हरिनाम बिना नर ऐसा है। दीपकबीन मंदिर जैसा है॥ध्रु०॥
 जैसे बिना पुरुखकी नारी है। जैसे पुत्रबिना मातारी है।
 जलबिन सरोबर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥१॥
 जैसे सशीविन रजनी सोई है। जैसे बिना लौकनी रसोई है।
 घरधनी बिन घर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥२॥
 ठुठर बिन वृक्ष बनाया है। जैसा सुम संचरी नाया है।
 गिनका घर पूतेर जैसा है। हरिनम बिना नर ऐसा है॥३॥
 मीराबाई कहे हरिसे मिलना। जहां जन्ममरणकी नहीं कलना।
 बिन गुरुका चेला जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥४॥

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